
Why Narnaul?
सच्चाई यही है की च्वनऋषि की तपोभूमि का चयन तो परमात्मा ने मेरे जन्म के पूर्व ही कर दिया था। सन 1985 में मैंने एक वर्ष यहाँ पर हसनपुर स्कूल में मुख्याधापक के रूप में कार्य किया था। इन्ही दिनों इन अरावली की पहाड़ियों में रात भर जागकर कठोर साधना की थी। इसी साधना के दौरान दैवीय शक्तियों ने मुझे दर्शन देकर कई बार चेताया था की आने वाले समय में ये आपकी कर्म भूमि होगी। रामकृष्ण परमहंस - स्वामी विवेकानंद एवं मेरे गुरुदेव ने सूक्ष्म शरीर से मेरा मार्ग दर्शन कर रहे थे।
सन 1986 से 2010 तक दिल्ली में भूगोल प्राध्यापक की भूमिका में कार्य करते हुए विवेकानंद आश्रम की स्थापना 1988 में अनाथालय की स्थापना की थी।
मैंने अपने गुरुदेव से कहा था की इस संसार में मेरी केवल दो इच्छाएं है , एक विवेकानंद स्मारक को देखना और कलकत्ता के काली मंदिर के दर्शन करना, मेरे हठ करने पर उन्होंने कहा था समय आने पर आप सब कुछ जान जायेंगे। अब वो समय आ गया था जब मै 5 जनवरी 2010 को स्वामी विवेकानंद स्मारक कन्याकुमारी पंहुचा तो एक महान विचार ने जन्म लिय। स्मारक पहुंचने पर मै आधे घंटे तक तडफता रहा जैसे मछली बिना पानी के तड़फती है। मुझे देखने के लिए काफी भीड़ इकट्ठा हो गयी थी। सायेकाल जब मै विवेकानंद केंद्र पंहुचा तो मैंने वहा के । अधिकारियो से पूछा की विवेकानंद स्मारक की स्थापना करने वाला कौन था? उन्होंने बताया ये महान कार्य एकनाथ रानाडे ने किया, उसके बाद मै अपने बच्चो सहित एकनाथ रानाडे की समाधि पर पंहुचा। सायकल मैंने एकनाथ रानाडे की आत्मकथा खरीदी और रात भर में उसको
पढ़ डाली। एकनाथ रानाडे की आत्मा मुझसे कह रही थी की क्या तुम अरावली के पर्वतो में उत्तर भारत के कन्याकुमारी की स्थापना क्यों नहीं कर सकते? जो दैवीय शक्तियाँ 1985 में सूक्ष्म रूप में मेरा मार्ग दर्शन कर रही थी, वह आज धरातल पर आ गया था।
कन्याकुमारी से लौटने के बाद मात्र 6 महीने में ही अरावली पर्वतो में भूमि खरीदी गयी और 27 नवम्बर 2011 को भूमि पूजा की गयी और विधिवत रूप से विवेकानंद शक्तिपीठ (उत्तर भारत का कन्याकुमारी ) में कार्य आरंभ हुआ। यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है जिसके चारो और अरावली की पहाड़ियां है जो आने वाले सभी साधको का मन हर लेती है।