
Background
स्वामी विवेक भारती का जन्म 19 अप्रैल 1958 , गांव कंवाली, जिला रेवाड़ी (हरियाणा) के एक साधारण किसान परिवार में हुआ। बचपन में स्वामी विवेक भारती का नाम राम निवास यादव रखा गया। धार्मिक प्रकृति होने के कारण शुरू से ही हर मंगलवार का व्रत रख हनुमान जी की पूजा करके खाना खाते थे। दसवीं तक की शिक्षा अपने गांव में ही की, उसके बाद 1978 में अहीर कॉलेज रेवाड़ी से बी:ए: की परीक्षा पास की। उसके बाद डी:ए:व्: कॉलेज अजमेर से प्रथम श्रेणी में एम:ए: भूगोल की परीक्षा पास की। इसी दौरान दयानन्द कॉलेज पुस्तकालय में मैंने स्वामी विवेकानंद का जीवन पढ़ा। उसके बाद मेरे जीवन में महान विचार ने जन्म ले लिया की मुझे विवेकानंद जैसा ही जीवन जीना है। मेरे मन में ये धारणा उत्पन होगई थी की विवेकानंद जैसा बनने के लिए महान गुरु का होना अति आवश्यक है अतः गुरु की खोज जरूरी है। एम:ए: करने के बाद मुझे घर वापस आ जाना चाहिए था लेकिन मैंने 3 वर्ष तक अजमेर में ही रहकर कठोर साधना शुरू कर दी सुबह 9 से 5 बजे तक रोजाना 8 घंटे पुस्तकालय में जाकर महान व्यक्तियो की आत्मकथा पढता था और सायकाल नाग पहाड़ियों का भ्रमण करता था। मेरा राम कृष्ण परमहंस कौन बनेगा अतः आपने गुरु की तलाश के लिए मैंने काली माँ की साधना शुरू की, हर अस्टमी, नवमी और चौदस को फाइवसागर रोड अजमेर काली मंदिर जाकर पूजा करता था। यह मंदिर उन दिनों अच्छी अवस्था में तो नहीं था लेकिन बूढ़ा पुजारी रहता था और वह पूजा की कुछ भभूत (राख) और मिश्री देता था वही मेरी 24 घंटे की खुराक होती थी। नाग पहाड़ियों में जाकर घंटो रोता था, हे ईश्वर मुझे मेरे गुरुदेव से कब मिलवाओगे आखिर 3 वर्षो के बाद वह दिन आ ही गया। 21 जुलाई 1984 को प्रथम मुलाकात में ही मेरे गुरुदेव ने कहा था की 21 सालो से तुम्हारा इंतजार कर रहा हू, यह भेट बहुत ही चमत्कारी थी जिसका वर्णन आप मेरी आत्मकथा (आस्तित्व की यात्रा) में पढ़ सकते है।
गुरुदेव की प्रथम मुलाकात ने मेरे चित और मानसपटल को हिला दिया था। उसी दिन मैंने अपनी भूगोल की पी:एच:डी: जो जे:न:यु: से कर रहा था उसी दिन छोड़ दी। कुछ वर्षो के बाद मेरी सरकारी नौकरी पाल्हावास स्कूल में लगी, 2 महीने बाद मेरा तबादला हसनपुर स्कूल नारनौल में हुआ। यहाँ पर रहकर च्यवन ऋषि ढोसी हिल में 9 महीने रात भर जागकर कठोर साधना की थी जो आगे चलकर मेरी महान कर्मस्थली बनी है उसके बाद 1985 में मेरी नियुक्ति शिक्षा निदेशालय दिल्ली के दौलतपुर स्कूल में होगई दिनभर अध्यापक के कर्त्तव्य निभाकर सायकल विभिन्न गावों में चले जाना, गरीब बच्चो को पढ़ाना, गांव की गलियों की सफाई करना, मेरी रुचि बन गयी थी इसी रुचि के कारण 1988 में ग्राम पंचायत की 5 एकड़ भूमि प्राप्त कर विवेकानंद आश्रम शिकारपुर अनाथालय की स्थापना की जिसमे आजकल अनाथ बच्चे रहते है। 20 मार्च 1994 को अपने गुरुदेव हरप्रशाद मिश्रा और महिंद्रा मिश्रा की उपस्थिति में एक बड़ा आयोजन कर विवेकानंद की मूर्ति स्थापित की। साधना में निरंतर बढ़ते हुए 25 गावों में 5 दिन तक विवेकानंद की झाकिया (नजफगढ़ ब्लॉक) निकली गई और 4 जुलाई 2002 को स्वामीजी के निर्वाण के 100 वर्ष पूरे होने पर शताब्दी समारोह का आयोजन हुआ जिसमे हजारो लोग शामिल हुए, यही पर मुख्य अतिथि के रूप में डाक्टर नरेंद्र कोहली, डाक्टर जगमोहन और गुरुदेव हरप्रशाद मिश्रा जी शामिल हुए, इसी दौरान मैंने अपनी आत्मकथा(आस्तित्व की यात्रा) लिखी जिसका विमोचन एक भव्य समारोह 24 अक्टूबर 2010 को हुआ। पुस्तक विमोचन के बाद दिन रात एक ही विचार आ रहा था मुझे कन्याकुमारी जाकर विवेकानंद स्मारक देखना है इन दिनों मेरे जीवन में रोज नयी आध्यात्मिक घटनाये घट रही थी जो मुझे प्रेरणा दे रही थी। विपरीत आर्थिक संसाधनों की कमी होते हुए भी मै परिवार सहित 5 जनवरी 2010 को विवेकानद रॉक पर पंहुचा और यही आलोकिक घटनाओ के कारण विवेकानंद शक्तिपीठ का जन्म हुआ। इन सब घटनाओ का इशारा तो गुरुदेव ने 1991 में कर दिया था।