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Swami Vivek Bharati 

स्वामी विवेक भारती एक युवा सन्यासी है। वह गृहस्थ सन्यासी का सम्पूर्ण धर्म निभाते हुए अपनी तपस्या के कारण आज भी 65 वर्ष की आयु में 18 घंटे कठोर परिश्रम करते है। अपना सर्वस्व न्योछावर करके राष्ट्रय को एक नूतन दिशा देने के लिए कृतसंकल्प है। वह सरल और सात्विक प्रकृति के धनी है। जातीयता, धर्म, उच्च नीच, धनी, गरीब भेद दृष्टि से परे है। वे प्रत्येक जीवात्मा में परमात्मा के दर्शन करते है। नर सेवा , नारायण सेवा के पुजारी है।  वह समस्त भेदभाव को भुलाकर शुद्ध राष्ट्रीयता और मानवता की सेवा में पिछले 45 वर्षो से कार्य कर रहे है। विधयर्थी जीवन काल से स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होकर उह्नोने संकल्प लिया था आगे चलकर राष्ट्रय के लिए नव - नूतन संसथान का निर्माण करूँगा। युवाकाल मै ही आपने दिल्ली में स्वामी विवेकानद आश्रम की  स्थापना 1988 में किया और उसको अनाथालय का स्वरुप देकर आगे बढ़ गए।

विनम्रता, त्याग, तपस्या, सकल्प, वैराग्य और राष्ट्रय प्रेम इनके जीवन का मूल मंत्र है।
5 जनवरी 2010 को कन्याकुमारी की यात्रा के दौरान विवेकानंद रॉक पर संकल्प और शपथ ली की उत्तर भारत के अरावली पर्वतो में 21 वि शताब्दी के युवाओ के लिए उत्तर भारत के कन्याकुमारी की स्थापना करूँगा। 

आज वह स्वपन कठोर साधना, कड़ी मेहनत, लगन के कारन
16 एकड़ भूमि में साकार रूप ले चूका है। सन 1985 में स्वामी जी के च्वन ऋषि की तपोभूमि ढोसी पर्वत श्रंखला में 9 महीने कठोर साधना की थी - प्रकर्ति का खेल अनूठा है, केवल वही सत्ता इस भूमि की साक्षी है। 

ठीक
28 वर्षो के बाद में दिल्ली की कर्मस्थली को छोड़कर वापस च्वन ऋषि की तपोभूमि में विवेकानंद शक्तिपीठ उत्तर भारत का कन्याकुमारी की स्थापना हुई है। वह सन्सथान आने वाले समय में राष्ट्र्य की सेवा में मील के पत्थर का काम करेगी। मेरा सम्पूर्ण जीवन इस तपोभूमि को समर्पित है। 

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